गोगा जी: राजस्थान भारत का सांस्कृतिक मुकुट रत्न है, जो विविधता और रीति-रिवाजों से परिपूर्ण है। राजस्थान के लोक देवी-देवता एक अलग ही महत्व रखते हैं। उनमें से एक नाम गोगा जी है।
राजस्थान के लोक देवता गोगा जी को लोकप्रियता और प्रमुखता का सच्चा प्रतीक माना जाता है। उनका इतिहास और महत्व गहन परंपराओं में निहित है। गोगा जी का जन्म चूरू जिले की राजगढ़ तहसील के ददरेवा गांव में हुआ था।
गोगा जी राजस्थान की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह आर्टिकल आपको गोगा जी के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान करेगा।
गोगा जी का सामान्य परिचय
उपनाम | साक्षात् जाहरपीर, साँपो का देवता, गौरक्षक देवता |
जन्म | ददरेवा (चुरू) (11 वीं शताब्दी) |
पिता | जेवर जी |
माता | बाछल दे |
जाति | राजपूत |
गौत्र | नागर वंशीय चौहान |
पत्नी | केलम दे/परिमल दे (बूढो जी राठौड़ की पुत्री) |
गुरु | गौरखनाथ |
प्रतीक चिन्ह | पत्थर पर सर्प चिन्ह |
पुत्र | केशरिया कुवंर |
मौसेरे भाई | अर्जन, सर्जन |
घोड़ी | नीली घोड़ी (गोगा बप्पा) |
गोगा जी की ओल्डी | किलौरियाँ की ढाणी, सांचौर (जालौर) |
शीर्ष मेड़ी | ददरेवा (चूरू) (यहाँ सिर गिरा था) |
गोगामेड़ी / धुरमेड़ी | नोहर (हनुमानगढ़) |
गोगा जी और गोगामेड़ी
- गोगामेड़ी का निर्माण फिरोजशाह तुगलक ने करवाया था।
- गोगामेड़ी का पुन: निर्माण महाराजा गंगासिंह ने करवाया था।
- गोगामेड़ी की आकृति मकबरा नुमा है।
- गोगामेड़ी के गेट पर ‘बिस्मिल्लाह’ लिखा हुआ है।
गोगा जी और साँप
गोगा जी का विवाह केलमदे से होना था, परन्तु विवाह से पूर्व ही इनकी मंगेतर को साँप ने डस लिया। गोगाजी क्रोधित हो मंत्र पढ़ने लगे जिससे सर्प मरने लगे। तब नागदेवता ने इन्हें ‘सर्पों के देवता’ होने का वरदान दिया।
गोगा जी और महमूद गजनवी
गोगा जी ने महमूद गजनवी की सेना से युद्ध किया। गजनवी ने गोगा जी को “जाहर पीर देवता की उपाधी दी। गोगाजी को “सर्वाधिक ‘जाहर पीर” उत्तर प्रदेश (यू.पी.) में कहते है।
गोगा जी के बारे में प्रमुख बिंदु
- गोगा जी का मेला “भाद्रपद कृष्ण-9′ को (गोगा नवमी) “नोहर” हनुमानगढ़ में लगता है।
- किसान हल जोतने से पहले ‘नौ गाठो’ वाली ‘गोगाराखड़ी हल और हाली दोनों के बांधते है।
- दशहरे को छोड़कर “गोगानवमी’ के दिन खेजड़ी की पूजा की जाती है।
- बिठू मेहा जी ने गोगाजी के रसावले की रचना की थी।
गोगा जी के पुजारी
गोगा जी के ‘एक हिन्दु’ व ‘एक मुस्लिम’ पुजारी होता है। मंदिर में 11 महीने तक पुजारी मुस्लिम जाति को होगा तथा मेले के समय 1 महीने तक पुंजारी हिन्दू होता है।
ऐसी मान्यता है कि गोगाजी की 17 वीं पीढ़ी के शासक कायमसिंह को मुसलमानों ने बलपूर्वके मुसलमान बना दिया था। अतः वर्तमान में इनके वंशज ‘कायमखानी मुसलमान’ कहलाते है, जो गोगाजी को अपना पूर्वज मानते है ।
गोगाजी की समाधि की पूजा ‘चायल’ जाति के मुसलमान करते है। गोगा जी की चायल जाति के मुसलमान डेरू वाद्य यंत्र के साथ फड़ बांचते है।
हमें उम्मीद है कि हमारा आर्टिकल पढ़ने के बाद आपको गोगा जी के बारे में सभी प्रकार की जानकारी मिल गई होगी। आप हमारी वेबसाइट पर इसी तरह के और भी आर्टिकल पढ़ सकते हैं और राजस्थान के अन्य लोक देवताओं के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।